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कविता संग्रह >> थोड़ा सा सूर्योदय

थोड़ा सा सूर्योदय

डॉ. संंजीव कुमार

प्रकाशक : अयन प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16226
आईएसबीएन :9789387622234

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कविता संग्रह

आमुख

 

अंधकार और प्रकाश समय-चक्र के दो पहलू हैं। दिन का उजाला रात के अंधेरे में समाहित हो जाता और रात का अंधेरा सबेरे के उजाले में। यह परिवर्तन जैसे शाश्वत है। मानव जीवन में परिस्थितियाँ कभी-कभी अंधकारपूर्ण समय ले भी आती हैं और कभी-कभी पसर जाता है यूँ कि जैसे अवसाद की चादर बिछ गयी हो। कठिन सा होता है इस अंधकार से लड़ना। यह कहने की बात है कि रात के बाद दिन आता ही है पर मन के अंधकार में प्रकाश को पैदा करना इतना सरल नहीं जितना उसे कहना। अंधकार से लड़ते-लड़ते कभी कभी संसाधनों की या आत्मशक्ति की कमी हो जाती है। और तब एक पल का अंधकार न जाने कितने संतापों को जन्म दे देता है।

अतः अंधकार की परिस्थितियाँ कभी तो सरलता से निपट जाती हैं और कभी कठिनता और उलझाव भी पैदा कर देती हैं। और इस अंधकार की व्यवस्था में यदि प्रकाश की एक भी किरन दिख जाये तो उससे आशा का जो संचार होता है वह एक नव जीवनदायी पल होता है। आँखें अंधेरों के बीच थोड़ी सी आशा किरन की प्रतीक्षा करती हैं तो वह यह स्पष्ट करता है कि उम्मीदों की शक्ति चेतना के लौट आने के बीच व्यस्त है, उसे आशा है कि एक बार थोड़ा-सा सूर्योदय उसके जीवन के लिये नया मार्ग प्रशस्त करेगा।

वर्तमान में भी कभी-कभी अतीत के प्रश्नों से मुक्ति नहीं मिलती और जुगनुओं की तरह यादें कौंधती रहती हैं। मन उल्लसित रहता है कि अतीत में अंधकार से जिस तरह थोड़ा-सा सूर्योदय हुआ था इस बार भी अलस होकर जायेगी रात और आयेगा नया प्रभात। अंधकार की परिस्थिति में जो भी साहचर्य मिलता है वह भुलाया नहीं जाता है और एक बार फिर जी उठता है मन।

चेतना के आयामों के बीच जब कोई स्वयंसिद्ध होकर सर उठाता है तो उसे याद दिलाना आवश्यक हो जाता है कि तुम मेरी बराबरी नहीं कर सकते तुम जीवन यात्रा में फैल तो सकते हो पर मेरी तरह परछाइयाँ नहीं बना सकते' यह तय मानों कि 'सात घोड़ों के रथ पर' 'मीलों का सफर' 'दुनिया को रोशनी देकर' कर पाना आसान नहीं और अगर कर कर सके तो अमरत्व को प्राप्त हो जाओगे।

'थोड़ा-सा सूर्योदय' अगर हम किसी की जिंदगी में ला सकें तो जीवन सार्थक हो जाता है किंतु मन के अंधकार से निकल पाना संभव ही नहीं हो पाता, बस एक सोच ही रह जाती है कि- कितना अनमोल है जीवन। कि बिखर जाता है शब्दों के बीच। और टिटहरी की तरह हम प्यासे ढूँढते रहते हैं शब्दों के अहसास कि गढ़ सकें एक गीत और महसूस कर सकें थोड़ा-सा सूर्योदय। मनस् क्षितिज पर।

इन्हीं शब्दों के साथ 'थोड़ा-सा सूर्योदय', जिसमें 2015-2016 की रचनाओं का संकलन है, जो अयन प्रकाशन के सौजन्य से सुधी पाठकों एवं काव्य मनीषियों को समर्पित है।

जनवरी-2018
केलार - यू.एस.ए.
नोयडा-201301

- डॉ. संजीव कुमार
desanjeevI@gmail.com

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    अनुक्रम

  1. कविता क्रम

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